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अङ्गराष्ट्र का उत्थान
मृत्यु शीश पर घूम रही है,
रह न सकोगी अब जीवित ।। 'क्या कुछ हुआ ?' हुआ क्या,
अपना पापपूर्ण घट फूट गया । माया-निर्मित तव अभेद्य गढ़,
हाय पलक में टूट गया । शूली स्वर्णासन में बदली,
. बाल न बाँका ज़रा हुआ । देव सहायक हुए, धर्म का,
___ जग में कंचन खरा हुआ । राज जी भी नंगे पैरों,
पहुँचे हैं भय-भ्रान्त विकल । पड़े हुए हैं सेठ-चरण में,
उपल-मूर्ति से अटल अचल ।। 'दुराचारिणी अभया है' यह,
कहते हैं सब नर-नारी । भेद खुल गया है छल बल का,
निन्दा फैली अति भारी ॥ राजा आने वाला है,
अब काल सीस मँडराता है। जीवन-रक्षा का कोई भी,
पथ न ध्यान में आता है ॥"
रानी ने यह कथन सुना तो,
कांपा थर - थर तन सारा ।
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