Book Title: Dharmavir Sudarshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 161
________________ जीवन-प पूर्णता के पथ पर -पट है बेरंग कब से ? संयम- रंग चढ़ाले, चढ़ाले जीवा ! जग-उपवन में अपना जीवन; पुष्प सुगन्ध बनाले, बनाले जीवा ! अखिल विश्व के दलित वर्ग की; सेवा का भार उठाले, उठाले जीवा ! सोया पड़ा है अन्तर चेतन; सत्संग बैठ जगाले, जगाले जीवा ! मोह - पाश के दृढ़ बन्धन से; अपना चित्त छुड़ाले, छुड़ाले जीवा ! हो तू भला इतना कि शत्रु भी, चरणों में शीश झुकाले, झुकाले जीवा ! राग द्वेष का जाल बिछा है, दूर से राह बचाले, बचाले जीवा ! 'अमर' सुयश के बाद्य बजेंगे, सत्य की धूनी रमाले, रमाले जीवा ! सेठ सुदर्शन जी ने पूछा, पूर्व जन्म का अपना हाल । गुरुवर बोले अवधि ज्ञान से, भेद पूर्व तमसावृत काल || " पूर्व जन्म में सेठ आप थे, ग्वाल 'सुभग' चंपा में निज- जनक श्राद्ध, Jain Education International आज्ञाकारी । 'जिनदास' सेठ के प्रिय भारी || सेठ निजालय पर गायों का, करते थे बहु १३८ बहु प्रतिपालन । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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