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अङ्गराष्ट्र का उत्थान
भूप तथा श्रेष्ठी ने मिलकर,
किया खूब गंभीर विचार |
पुनरुद्धार ॥
बनी योजनाएँ जिनसे हो, अंगराष्ट्र का
एकमात्र श्रेष्ठी को सौंपा,
उक्त कार्य का सारा भार ।
श्रेष्ठी ने भी दिखा दिया,
यों भूतल पर ही स्वर्ग उतार ॥
नगर - नगर में ग्राम - ग्राम में, खुले हजारों
क्या युवती, क्या युवक सभी, पाते हैं
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प्रातः सायं ज्ञान - मन्दिरों में, ज्ञानार्जन
नानाविध ग्रन्थों का वाचन,
विद्यालय ।
शिक्षा नित्याक्षय ॥
होता
है ।
कुमति कालिमा धोता है ॥
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औषध - गृह में मुफ्त औषधी, मिलती व्याधि - ग्रस्त कोई भी रहता,
-
है सर्वत्र
नहीं विवश संत्रस्त
शासन और न्याय सब प्रायः, पंचायत ही करती कष्टों की मरु- धरणी में.
सुख
भार करों का वृथा प्रजा पर,
सदा I
थीं ।
नदी - तरंगें भरती थीं ॥
कदा ॥
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था वह बिल्कूल दूर किया ।
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