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________________ अङ्गराष्ट्र का उत्थान भूप तथा श्रेष्ठी ने मिलकर, किया खूब गंभीर विचार | पुनरुद्धार ॥ बनी योजनाएँ जिनसे हो, अंगराष्ट्र का एकमात्र श्रेष्ठी को सौंपा, उक्त कार्य का सारा भार । श्रेष्ठी ने भी दिखा दिया, यों भूतल पर ही स्वर्ग उतार ॥ नगर - नगर में ग्राम - ग्राम में, खुले हजारों क्या युवती, क्या युवक सभी, पाते हैं Jain Education International प्रातः सायं ज्ञान - मन्दिरों में, ज्ञानार्जन नानाविध ग्रन्थों का वाचन, विद्यालय । शिक्षा नित्याक्षय ॥ होता है । कुमति कालिमा धोता है ॥ - औषध - गृह में मुफ्त औषधी, मिलती व्याधि - ग्रस्त कोई भी रहता, - है सर्वत्र नहीं विवश संत्रस्त शासन और न्याय सब प्रायः, पंचायत ही करती कष्टों की मरु- धरणी में. सुख भार करों का वृथा प्रजा पर, सदा I थीं । नदी - तरंगें भरती थीं ॥ कदा ॥ For Private & Personal Use Only था वह बिल्कूल दूर किया । १३४ www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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