________________
धर्म-वीर सुदर्शन
रानी ने उसके द्वारा ही, यह षड्यंत्र
अभया रानी और सेविका,
फैल गई द्रुत विद्युत - गति से, चंपा नगरी
सभी प्रजाजन ने सत्पथ की,
रंभा की यह बुरी ख़बर |
किं
और दंभ की, दुराचार की, दुष्कृत पथ
-
एक स्वर से बोली
भोग - वासनाओं पर सहसा, घृणा सदाचार - जीवन के अविचल,
Jain Education International
कराया
में
न्यायालय में एक समय,
की बोली क्षय ॥
है
जनता - हितकर वह पहले का,
कार्य
9
घर-घर ।।
भाव सब में छाए ।
भाव हृदय में सरसाए ।
बहुना, अभया की,
राजाजी ने मृत - अन्त्येष्टि करी । फैल रही थी जो भी गड़बड़,
उसकी शीघ्र समाप्ति करी ॥
अंग राष्ट्र के पतन का, कंटक हुआ समाप्त; होता है अब देखिए, कैसे गौरव प्राप्त ?
जय ।
नरपति ने सेठ बुलाया है ।
है ॥
ध्यान में आया
१३३
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org