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धर्म - वीर सुदर्शन
तो अपने से लाखों को,
सत्पथ का पथिक बना जाए || ”
आखिरकार सेठ का आग्रह,
किया ।
जय-जयकार किया ||
राजा ने स्वीकार
'धन्य दयासागर' का सब, जनता ने
मन्त्रीश्वर की याद हुई,
झट कारागृह देखा जो अति दिव्य अलौकिक, दृश्य अमित विस्मय
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से बुलवाए ।
पाए ॥
चमक उठा मुखचन्द्र- बिम्ब,
कुछ नहीं हर्ष का पार रहा । रोम-रोम में अटल सत्य की,
श्रद्धा का
परिवाह बहा ।।
हर्षमत्त हो लगे बोलने,
जय पर, जय के घोष महान् । लाखों स्वर से प्रतिध्वनित हो,
गूंज उठा ब्रह्माण्ड - वितान ॥
सत्य की जग में एक विजय है !
तम का पर्दा फटा सत्य का हुआ दिनेश उदय है ! सत्य - कवच है जिसने पहना वह सर्वत्र अभय है, अत्याचारी दंभ- चक्र की होती अन्त प्रलय है, सत्य की जग में एक विजय है ! सत्य रंग में रँगा हुआ यदि दृढ़ विश्वस्त हृदय है, और चाहिए फिर क्या जग में, क्षेम कुशल अक्षय है, सत्य की जग में एक विजय है !
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