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________________ धर्म - वीर सुदर्शन तो अपने से लाखों को, सत्पथ का पथिक बना जाए || ” आखिरकार सेठ का आग्रह, किया । जय-जयकार किया || राजा ने स्वीकार 'धन्य दयासागर' का सब, जनता ने मन्त्रीश्वर की याद हुई, झट कारागृह देखा जो अति दिव्य अलौकिक, दृश्य अमित विस्मय Jain Education International से बुलवाए । पाए ॥ चमक उठा मुखचन्द्र- बिम्ब, कुछ नहीं हर्ष का पार रहा । रोम-रोम में अटल सत्य की, श्रद्धा का परिवाह बहा ।। हर्षमत्त हो लगे बोलने, जय पर, जय के घोष महान् । लाखों स्वर से प्रतिध्वनित हो, गूंज उठा ब्रह्माण्ड - वितान ॥ सत्य की जग में एक विजय है ! तम का पर्दा फटा सत्य का हुआ दिनेश उदय है ! सत्य - कवच है जिसने पहना वह सर्वत्र अभय है, अत्याचारी दंभ- चक्र की होती अन्त प्रलय है, सत्य की जग में एक विजय है ! सत्य रंग में रँगा हुआ यदि दृढ़ विश्वस्त हृदय है, और चाहिए फिर क्या जग में, क्षेम कुशल अक्षय है, सत्य की जग में एक विजय है ! ११७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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