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________________ आदर्श क्षमा - बना शीघ्र शूली से कैसा आसन कांचनमय है, सत्य-प्रताप असंभव, संभव होता, अति विस्मय है, ___ सत्य की जग में एक विजय है! धन्य सुदर्शन ! सत्य आपका अचल चमत्कृति-मय है, त्याग और वैराग्य भाव का उमड़ा सिन्धु सरय है; ___ सत्य की जग में एक विजय है! सदाचार की जीवित प्रतिमा, यह प्रत्यक्ष-विषय है, चंपा का गुण-गौरव फैला त्रिभुवन में अतिशय है; सत्य की जग में एक विजय है ! जयकारों के बीच सचिव का, जब वक्तव्य समाप्त हुआ । क्षमायाचना करने का तव, नृप को अवसर प्राप्त हुआ ।। हाथ जोड़कर माफी माँगी, अपने निंद्य दुराग्रह की । क्षमादान कर मंत्री ने भी, ___ रक्खी - टेक सदाग्रह श्रेष्ठी की आज्ञा से राजा, मंत्री दोनों गले लगे । स्नेह-क्षीरसागर लहराया, द्वेष - भाव सब दूर भगे । स्वर्ण - सिंहासन-सहित, पट्ट हस्ती पर सेठ सवार हुए । पीछे उमड़ चला जन-सागर, सादर जय - जय-कार हुए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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