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आदर्श क्षमा
जग
पापाचारी का न क्षणिक भी, में जीवन अच्छा है । पापाचार बढ़ेगा अति ही, अस्तु मरण ही
अच्छा है ।
अगर दंड दे दुष्टा को,
दुष्फल न चखाया
तो फिर जग में सती धर्म, ध्वज कैसे
का
और हुक्म करिएगा,
दोष आपको क्या इसमें,
यह तो बस कृपया रहने दें ।
बोले श्रेष्ठी "प्राण - दंड से, क्षमा कहीं
मुझको नृप शासन करने दें ।”
राजन् ! प्राण दंड का देना,
दोष नाश के लिए अगर,
श्रेयस्कर है ।
अति ही घोर भयंकर है ॥
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तो, यों समझो रोग नाश के, लिए रुग्ण ही
उस दोषी को ही मार दिया ।
किया ॥
-
फ़हराएगा |
एक दुष्ट यदि सज्जन बनकर, जीवित
जग
जाएगा ।
प्राण - दंड से भौतिक तन का,
मात्र रक्त क्षमा दंड से ही पापी का, पाप - मैल धुल सकता
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नष्ट
में
बह सकता है ।
है ॥
रह
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पाए ।
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