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धर्म-वीर सुदर्शन नानाविध शस्त्रों से सज्जित,
सेना आगे चलती बजते हैं बहु बाद्य, मधुरतम,
पुष्प - सुराशि उछलती
है।
है ॥
राजा स्वयं सेठ के मस्तक,
पर निज छत्र लगाता है । और सुबुद्धि मंत्रीश्वर हर्षित,
होकर चँवर ढुराता है ॥
पाठक-वृन्द ! हर्ष का सागर,
इधर उमड़ता ___आता है। और उधर भी देखें,
क्योंकर हर्षार्णव लहराता है ।
अन्तरंग था सेवक श्रीयुत,
सेठ सुदर्शन का प्यारा । देखा जो यह दृश्य,
हृष्ट हो अपने मन में यों धारा ॥
"स्वामी से पहले जाकर मैं,....
करूँ सूचना हर्षमयी । आनन्दित होंगी सेठानी,
मातृ - स्वरूपा स्नेह-मयी ॥" स्वामी अपने धर्म-कर्म में,
दृढ़, दयालु जो होता है । वेतन-भोगी नौकर को भी,
निज-कुल जन ही जोता है ।
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