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आदर्श क्षमा
अखिल विश्व में धर्म का तेज प्रताप अखंड; विद्रोही भी चरण में गिरते त्याग घमंड ।
न्यायालय में खबर लगी,
नंगे सिर नंगे पैरों ही, ज्यों-था
तो भूपति भी अति घबराया ।
त्यों दौड़ा
हाथ जोड़ कर ' क्षमा- क्षमा',
भयकातर आँखों से झर-झर, अश्रु - मेघ भी बरस
पशु - बल कितना ही भीषण हो, किन्तु अन्त प्राण- शत्रु भी चरणों में गिर, आखिर बोलें
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करता चरणों में आन पड़ा ।
पड़ा ॥
अटल सत्य का पक्ष चाहिए,
सर्ग बारह
मानव तो क्या, अखिल विश्व पर,
विजय
अन्त
१११
आया ॥
में होती हार ।
जय-जयकार |
फिर दुनियाँ में क्या भय है ?
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में निश्चय है ॥
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