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________________ धर्म-वीर सुदर्शन वन्दनीय है वह जो मरने, पर भी रखता मस्ती है । आँधी के चक्कर में टीबे, बालू के उड़ जाते हैं । लेकिन, दुर्गम, उन्नत पर्वत, कभी न हिलने पाते हैं । जनता की आँखों के आगे, मौत नाचती फिरती थी । किन्तु सुदर्शन के मुख पर तो, अविचल शान्ति उमड़ती थी । जल्लादों ने शूली की इस, ओर योजना शुरू करी । और उधर कर. जोड़ सेठ ने, देव - वन्दना शुरू करी ॥ अर्हम्, अहम्, अहम्, अहम् ! अहम्, अहम्, अहम्, अहम् ! पावन परम-पुनीत अनन्त अचल, होता कलिमल का न ज़रा भी दखल; ज्ञान-ज्योति-प्रकाशित त्रिलोकी सकल, मनसा वचसा अलक्ष्य स्वरूप विमल । ___ अर्हम्, अहम्, अहम्, अहम् ! प्रेमी भक्तों का प्यारा तू भगवान है, ज्योतिः -पुंज असीम प्रकाशमान है; सारे विश्व का ज्ञाता अमित ज्ञान है, सब से बढ़ कर निराली तेरी शान है । अहम्, अहम्, अहम्, अहम् ! १०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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