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________________ शूली से सिंहासन बन्धुओ ! शूली नहीं, यह स्वर्ग का शुभ द्वार है; सत्य की पूजा का अभिनव यज्ञ-पथ तैयार है ! ख़ौफ कुछ भी है नहीं, मेरे हृदय में मौत का; हर्ष का उमड़ा है चहूँ दिश पूर्ण पारावार है; मैं मरूँगा क्या, मेरी खुद मौत ही मर जायगी; मोक्ष में अमरत्व का मेरे लिए भंडार है । मौत ऐसी भूमि तल पर मिलती है सौभाग्य से; सादर स्वागत हजारों, लाखों, क्रोड़ों बार है । फूल - सी कोमल, सुतीक्षण नौंक लगती है मुझे; स्वर्ण सिंहासन पे चढ़ने की अज़ीब बहार है । आप क्यों रोएँ, बजाएँ तालियाँ, खुशियाँ करें; आपका भाई शहीदों में हुआ शुम्मार धर्म पर मरना न आया, काम-भोगों पर मरा, है । मानवीन पाके भी संसार में भू-भार है । सत्य खुल कर ही रहेगा, दूर होगा सब असत्, देखना कुछ क्षण में होगा भूप खुद बेदार है । आप लोगों को मैं अन्तिम भेंट में क्या आज दूँ, श्रेष्ठ यह आदर्श ही मम प्रेम का उपहार है । धर्म - वीर का धर्म - रहस्य से, पूरित था झलक रही थी निर्भयता, Jain Education International वक्तव्य महान् । था भय का कहीं न नामनिशान ॥ जीवन पाने पर तो सारी, दुनिया हड़ हड़ १०६ हँसती है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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