________________
सर्ग दस
सर्ग दस
पौरजनों का प्रेम
सेठानी की भी खबर, फैली नगर मँझार, दुःख में दुःख उमड़ा मचा दुगुना हाहाकार । कपिल पुरोहित का हुआ, सुनकर हाल बेहाल; आँखों - आगे नाचने लगा शोक दे ताल । चंपापुर के प्रमुख जन साथ लिए साधार; सेठ छुड़ाने के लिए, पहुँचा राज-द्वार ।
राजा जी को बड़े विनय से,
किया सभी ने अभिवादन । प्रस्तुत करते मधुर भाव से,
नम्र निवेदन मन - भावन ॥ . "देव ! आपने यह क्या सोचा,
व्यर्थ उठा यह क्या रगड़ा ? सेठ सुदर्शन के पीछे,
निर्मूल लगा यह क्या झगड़ा ? झूठा, बिल्कुल झूठा है,
___ जो अपराध लगाया है । धोखा देकर किसी दुष्ट ने,
राजन् ! तुम्हें बहकाया है ॥
D
D
-
६१ For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org