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धर्म-वीर सुदर्शन है यह सब षड्यन्त्र क्योंकि,
यह दुःखी जनों का नेता है ॥ अरे कायरो ! क्या रोते हो,
तन मन क्लीबों - जैसा धार । मर्द बने हो किस बिरते पर,
सौ-सौ बार तुम्हें धिक्कार ॥ चम्पापुर का प्राण तुम्हारे,
सम्मुख मारा जाता है । पत्थर से तुम खड़े, न कुछ भी,
किया कराया जाता है ॥ सदाचार साकार सुदर्शन,
उसकी यह दुरवस्था है । कहो, तुम्हारे फिर जीवन की,
कितनी चिर सद्वस्था है ? होता है चहुँ ओर खुदी का,
तांडव न्याय न मिलता है । पशुओं से भी अधम आज,
हम सबका जीवन चलता है ॥ अंग राष्ट्र की कीर्ति एक दिन,
फैली थी जगती तल में । आज कहीं भी पूछ नहीं है,
मरा चाहता है पल में ॥ भेड़ बकरियों जैसा कब तक,
जीवन भार निभाओगे ? गूंगे बनकर 'म्याँ म्याँ' करते,
__ कब तक शीश कटाओगे ॥
में
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