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________________ %3 धर्म-वीर सुदर्शन है यह सब षड्यन्त्र क्योंकि, यह दुःखी जनों का नेता है ॥ अरे कायरो ! क्या रोते हो, तन मन क्लीबों - जैसा धार । मर्द बने हो किस बिरते पर, सौ-सौ बार तुम्हें धिक्कार ॥ चम्पापुर का प्राण तुम्हारे, सम्मुख मारा जाता है । पत्थर से तुम खड़े, न कुछ भी, किया कराया जाता है ॥ सदाचार साकार सुदर्शन, उसकी यह दुरवस्था है । कहो, तुम्हारे फिर जीवन की, कितनी चिर सद्वस्था है ? होता है चहुँ ओर खुदी का, तांडव न्याय न मिलता है । पशुओं से भी अधम आज, हम सबका जीवन चलता है ॥ अंग राष्ट्र की कीर्ति एक दिन, फैली थी जगती तल में । आज कहीं भी पूछ नहीं है, मरा चाहता है पल में ॥ भेड़ बकरियों जैसा कब तक, जीवन भार निभाओगे ? गूंगे बनकर 'म्याँ म्याँ' करते, __ कब तक शीश कटाओगे ॥ में - - - - १०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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