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________________ शूली से सिंहासन उठो गर्ज कर, बनो न दब्बू, सत्ता का गढ़ जनता की भी कुछ ताकत है, दहलादो । मत्त भूप को दिखलादो ॥ जीवन का क्या मोह न्याय पर, हँसते हँ - अमर शहीदों में स्वर्णाक्षर से, निज नाम ओजस्वी वक्तव्य सुना तो, जनता में विप्लव की भीषण, आग सर्वतः " पकड़ो, मारो इन दुष्टों की, हड्डी ड्ड श्रेष्ठी को लो छुड़ा अभी, बिजली नस नस दौड़ गई । फैल गई ॥ Jain Education International — चूर्ण करो । जो करना है वह तूर्ण करो ॥" युवकों का दल गर्जन करता, सैनिक दल की रोम-रोम में बड़े वेग से, सेठ सुदर्शन ने देखा जो, रक्त-पात लिखा जाओ ।" मर जाओ । बोले शान्ति - स्थापनाकारी, प्रतिहिंसा का नशा का विकट समय । "ठहरो ठहरो, क्या करते हो ? होते ओर बढ़ा । चढ़ा || वाणी स्नेह सुधारस १०२ — हो क्यों उत्तेजित ? For Private & Personal Use Only मय ॥ www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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