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आदर्श पतिव्रता पति शूली चढ़ाये जाते हैं,
निष्कारण मारे जाते हैं; संकट में हैं कुछ सार करो,
___जगदीश प्रभो, जगदीश प्रभो ! सीता का संकट टारा था,
द्रौपदी का पट विस्तारा था; मुझ पर भी क्यों न विचार करो,
जगदीश प्रभो, जगदीश प्रभो ! अति विकट पहेली उलझी है,
जो नहीं किसी से सुलझी है; शुभसत्य की जय-जयकार करो,
जगदीश प्रभो, जगदीश प्रभो !
देव-प्रार्थना करने से,
कुछ मन-दुर्बलता दूर हुई । कातर अति अबला की छाती,
___साहस से भर - पूर हुई ॥ "बाल्यकाल से पूर्ण अखंडित,
धर्म पतिव्रत पाला है । मैंने अब तक नहीं लगाया,
तिलभर धब्बा काला है ॥ क्यों न सत्य फल देगा मेरा,
देगा, देगा, फिर देगा । प्राणेश्वर को हँसी-खुशी से,
झट बेदाग छुड़ा लेगा ॥ अब तो पति के हाथों से ही
सुखद अन्न जल पाऊँगी ।
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