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________________ आदर्श पतिव्रता पति शूली चढ़ाये जाते हैं, निष्कारण मारे जाते हैं; संकट में हैं कुछ सार करो, ___जगदीश प्रभो, जगदीश प्रभो ! सीता का संकट टारा था, द्रौपदी का पट विस्तारा था; मुझ पर भी क्यों न विचार करो, जगदीश प्रभो, जगदीश प्रभो ! अति विकट पहेली उलझी है, जो नहीं किसी से सुलझी है; शुभसत्य की जय-जयकार करो, जगदीश प्रभो, जगदीश प्रभो ! देव-प्रार्थना करने से, कुछ मन-दुर्बलता दूर हुई । कातर अति अबला की छाती, ___साहस से भर - पूर हुई ॥ "बाल्यकाल से पूर्ण अखंडित, धर्म पतिव्रत पाला है । मैंने अब तक नहीं लगाया, तिलभर धब्बा काला है ॥ क्यों न सत्य फल देगा मेरा, देगा, देगा, फिर देगा । प्राणेश्वर को हँसी-खुशी से, झट बेदाग छुड़ा लेगा ॥ अब तो पति के हाथों से ही सुखद अन्न जल पाऊँगी । - - ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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