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धर्म-वीर सुदर्शन वर्ना मैं इस आसन पर ही,
घुल-घुल कर मर जाऊँगी ॥” . सागारी संथारा अति ही,
दृढ़ता - पूर्वक ग्रहण किया । एक-मात्र जिनराज-भजन में,
अविचल निज मन जोड़ दिया ॥ देखा पाठक, पतिव्रता का,
जीवन ऐसा होता है । आदर्श वीर सतियों का पावन,
अखिल पाप मल धोता है ॥ सती साध्वी वही जगत में,
ललनाएँ यश पाती हैं । दुःखकाल में भी जो अपने, .
पति से प्रेम निभाती हैं । सदा एकसी सुख-दुःख में,
परछाईं ज्यों रहती है । अर्धाङ्गी होने का सच्चा,
गौरव वे ही लहती हैं ॥ पतिव्रता के लिए स्वपति ही, .
परम पूज्य परमेश्वर है। हृदय-भवन का एक-मात्र,
वह अधिकारी हृदयेश्वर है ॥ चाहे पति हो रोगी, पीड़ित,
दीन, दुखी, दुर्भागी हो । प्रेम-भाव से पतिव्रता नित,
___ चरणों की अनुरागी हो ॥
___iatcaticles
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