Book Title: Budhjan Satsai Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay View full book textPage 9
________________ कवि-परिचय। आप उच्च कोटिके कवि भी थे । आपकी कविताका विपय भव्य प्राणियोंको जैनधर्मके सिद्धान्त समझाना तथा प्रवृत्ति-मार्गसे हटा कर निवृत्ति-मार्ग में लगाना था। ___आपके बनाये हुए चार ग्रंथ प्रसिद्ध हैं, और वे चागें ही छन्दोबद्ध हैं। १ तत्वार्थबोध, २ बुधजनसतसई, ३ पंचारितकाय, ४ बुधजनविलास । ये चारों ग्रंथ क्रमसे विक्रम संवत् १८७१-७९-९१-९२ में बनाये गये है । नं० २ का ग्रन्य आपके हाथमें है । बुधजनविलास बहुत बड़ा ग्रंथ है, जिसका बहु भाग जैनपदमंग्रह पॉचवां भाग (२३३ पद) इष्टछत्तीसी छहढाला वगैरः जैन-ग्रंथ-लाकर कार्यालय द्वारा प्रकाशित हो - हम सहृदय पाठकोंके अवलोकनार्थ कुछ दोहे उद्धृत करते हैं, पाठक स्वयं ही देख लेंगे कि ये दोहे वर्तमान समयमें प्रचलित वृन्द, रहीम, विहारी, तुलसी, कवीर आदि स्वनामधन्य कवियोंके दोहोंसे किसी भी अंगमें कम नहीं हैं: दुष्ट भलाई ना करे, किये कोटि उपकार । सर्प न दूध पिलाइये, विप ही के दातार बुधजन) मूरखको हितके वचन, सुनि उपजत है कोप । सॉपहि दूध पिलाइये, ज्यों केवल विप ओप ॥Page Navigation
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