Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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विगगभावना। मुर गैरे संजयत मुनि, दह विद्याधर मार । मो महिक मिवतिय वर्ग, फनिटें किया उपगार ||८९॥ गांद गार्धा गाई तिरया. कहा नाह कहा चोर । अंजन भया निरजना, येठ वचनके जोर ॥१०॥ मारे मृग्गे चुन चि, कट लया भर मात | राय जमोधर चद्रमति, नाकी कथा विग्न्यात ||९१॥ मुम्ही पमु उपय मुनि, मुली क्यो न पुमांन । नाहन्न भये चीरजिन, गज पारस भगवान ॥१२॥ अगनि जगई सुमर सिर, आप मगन रहि ध्यान । गजकुमार मुनि करम हरि, भये सिद्ध भगवान ॥१३॥ कोद महा माया तम्या, कार्या भांड़ अनान । सिरीपाल माहम गया, जाय लो निजथान ॥१४॥ गनिकायर आस्ट गिरि, रतनदीप मेह। चारुदत्त फुनि मुनि भये, मुकलव्यान आस्ट ॥१५॥ जय ममान श्रेष्ठी लियो, ग्वा अमर घर जाय । दुष्ट या नृय मुनि भयो, जीवंधर सिर थाय ॥९॥ मंदिर कोट महमके, चंच दिये सिवकोट । समंतभद्र उपदंग सुनि. आये जिनमतओट ॥१७॥ महान महज त्यागन लगे, धनकुमार संमार । सालभद्र मुनि नहें तन्यो, दो मुनि हप लार ॥९८॥ १ गादमम्यन्त्र-प्रधान ! २ पुरुष । ३मागर-समुद्र। ४ जीना-काष्टांगार तुष्टको हराया।
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