Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 7
________________ कावि-परिचय। आपके मन्दिरका मसाला चुरखा २ कर मॅगाता है। इससे मालूम होता है, कि उसकी नीयत खराब है। ऐसे व्यक्तिको आप नोकर न सिये। दीवानजीने उसकी बातें सुनकर कहा कि भदीचन्द्रजी मकान वगैरह अपने निर्वाहाय तो बनाते ही नहीं हैं। वे तो भव्यजीवोंके कल्यानाथ जिनालय बनवाने हैं। अच्छा है, उन्हें जमा चाहे बमा करने दो । उसके बाद एक दिन जब उनकी शिकायत करनेवाले मन्दिरजीके पास बड़े हा ये दीवानजी वहॉ जा पहुंचे और कहने लगे, भदीचन्द्रजी. दुसरे मन्दिर मी आप जी गोल कर काम करवाइये। किसी प्रकारकी कमी न रहने दें, दीवानजीकी यह बात सुनकर चुगलखोरोंका चहरा उनर गया। मन्दिगेक बन चुकनपर भदीचन्द्रजीन उनमें भगवानकी प्रतिमाओंके स्थापनका विचार किया । आपने गिलावटोंक पास ६ माह तक बैठकर गावानुकल बड़ी ही मनोज्ञ प्रतिमाएं बनवाई। इन दोनों मन्दिरोंका पंचकल्याणक महोत्सव 2 दीवानजी मन्दिरमें श्री मूलनायककी प्रतिमा चवरीमें विराजमान है तथा श्रीभदीचन्द्रजीके जिनालय में श्रीमलनायक श्री १००८ श्रीचन्द्रप्रभ भगवानकी

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