Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 13
________________ देवानुरागशतक। यादि हियामैं नाम मुख, करौ निरन्तर वास । जौलौं वसवौ जगतमैं, भरवौ तनमैं साँस ॥१६॥ मैं अजान तुम गुन अनत, नाहीं आवै अंत । चंदत अंग नमाय वसु, जावजीव-परजंत ॥१७॥ हारि गये हौ नाथ तुम, अधम अनेक उधारि। धीरें धीरे सहजमें, लीजै मोहि उपारि ॥९८॥ आप पिछान विसुद्ध है, आपा कह्यौ प्रकास। आप आपमें थिर भये, बंदत बुधजन दास ॥१९॥ मन मूरति मंगल बसी, मुख मंगल तुम नाम । एही मंगल दीजिये, परयौ रह तुम धाम ॥१०॥ इति देवानुरागशतक।

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