Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 55
________________ उपदेशाधिकार। असन औषिधी भूखकी, वसन औषधी सीत । भला बुरा नहिं जोइये, हरजे बाधा मीत ॥७६|| खाना पीना सोवना, फुनि लघु दीरघ व्याधि । राव रंककै एक सी, एती क्रिया असाधि |७७|| वाही बुधि धन जात है, वाही बुधिते आत । जिनस व्याज विनजत वधे. ताही करते जात ||७|| पंडित भावो मृढ़ हो, सुखिया मंद कपाय । माँठो मोटों है बलध, ताती दुवरी गाय ॥७९॥ बंध भोग कपायते, छटै भक्ति वैराग । इनमें जो आछा लगे, ताही मारग लाग ॥८॥ दुष्ट दुष्टता ना तजे, निंदत ह हर कोय । सुजन सुजनता क्यों तज, जग जस निजहित होया८१॥ दुष्ट भलाई ना करें, किये कोटि उपकार । सरपन दूध पिआइये, विपहीके दातार ॥८२॥ दुष्ट संग नहिं कीजिये, निश्चय नासै प्रान । मिल ताहि जारै अगनि, भली बुरी न पिछान ॥८३॥ दुष्ट कही सुनि चुप रहो, बोलें है है हान । भीटा मार कीचमैं, छीटे लागै आन ॥४॥ १ देखिये । २ वाधा मिटालीजिये । ३ लघुशंका-पेशाव । ४ दीर्घशंका-पाखाना । ५ वस्तु-चीज। ६ ठंडा-मारियाल । ७ गरम तेज । पत्यर।

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