Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ उपदेशाधिकार। तनकी दौर प्रमानत, मनकी टौर अपार । मन बढ़करि घटि जात हे, घट न तनविस्तार ॥१५॥ मनकी गति को कहि मके, मर जान भगवान | जिन याको बसि कर लयों, ने पहुंचे शिवथान ॥९॥ परका मन मेला निखि, मन बन जाता सेर । जब मन मांग आनते, तब मनका ई सेर ॥९७॥ जब मन लाग मोचम, तत्र नन देत सुकात । जब मन निग्भ मुख गहै, तब फ़्लै सब गात ॥१८॥ गति गतिम मरते फिरे, मनमै गया न फेर । फेर मिटत मनतना, मग न दूजी बेर ॥१९॥ जिनका मन आतुर भया, ते भूपति नहिं रंक । जिनका मन संतोपमै, ते नर इंद्र निसंक ॥४०॥ जंत्र मंत्र आपधि हरे, तनकी व्याधि अनेक । मनकी बाधा मब हरे, गुरुका दिया विवेक ॥१॥ वही ध्यान वह जाप व्रत, यही ज्ञान मरधान । जिन मन अपना बसि किया, तिन मत्र किया विधान ॥२॥ विन सीखं वचों नहीं, सीखो राख विचार । झूठ कपटकी दालकरि, ना कीजे (?) तरवार ॥३॥ जीनत मग्ना भला, अपजस सुन्या न जात । कहनत मुनना भला, विगर जाय है बात ॥४॥ अपने मन आछी लगे, निंदें लोक सयान | ऐसी परत (१) न कीजिय, तजियै लोभ अग्यान ॥५॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91