Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 75
________________ - विरागभावना। ममता काठ अन मते, चिता अगनि लगाय । जरै अनंनाफालकी. ममता नीर बुझाय ॥४८॥ ममता अपनी नारि मग, निन सुख निरम होय । भय कलेगकग्नी विपत. ममता परकी जोय ॥४९॥ ममता संग अनाटिकी, करें अनते फल । जब जिय गुरु मंगति कर, तब या छांड गल ॥५०॥ ममता बेटी पापकी. नरक-मदन ले जाइ । धर्ममुना ममना जिकी. सुरगमकतिमुखदाइ।।५।। ममता गमताकी कग. निन घटमाहि पिछान । उरी ती आठी भजी, जो तुम ही बुधिमान ॥५२॥ जाकी संगति दम लहा. नाकी नजो न गल। तो तुमको कान्येि म्हा, ज्याले. त्या हो बल ||५|| पूर्व कमाया मो लिया, कहा किये होय काम | अत्र करनी ऐसी आग, पग्मा होय खुम्बाम ॥५४॥ जी द्यां नम यहां, बग्नन है मत्र व्याध। ज्या अब द्यां माधन गर्ग, त्यो ही परभव माध ॥५५॥ याही भीम रचि रहे. परभा झगें न याद । चाले गते होयक, क्या बायोगे बाद ॥५६|| जोला काय कटें नहीं. म्है भृगकीव्याध । परमाग्य म्याग्यनना, तीला माधन माध ॥५७॥ खी।

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