Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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बुधजन-सतसईमांस पुष्ट निज करनको, दुष्ट ऑन-पल खात । बुरा करते है भला, सो कहुं सुनी न बात ॥६॥ स्यार सिंह राक्षस अधम, तिनका भख है मांस । मोक्ष होन लायक मनुप, गहैं न याकी बांस ॥६५॥ उत्तम होता मांस तौ, लगता प्रभुके भोग । यौं भी या जानी परै, खोटा है संयोग ॥६६॥
मद्यनिषेध। सड़ि उप प्रानी अनंत, मदमैं हिंसा भौत । हिंसातै अघ ऊपजे, अघतै अति दुख होत ॥६७॥ मदिरा पी मत्ता मलिन, लौटे वीच बजार । मुखमैं मृत कूकरा, चा, विना विचार ॥६॥ उज्जल ऊंचे रहनकी, सबही राखत चाय । दारू पी रोरी पर, अचरज नाहिं अघाय ॥६९।। दारूकी मतवालमैं, गोप बात कह देय | पीछे वाका दुख सहै, नृप सरवस हर लेय ॥७०॥ मतवाला है बावला, चाल चाल कुचाल। जात जावै कुगतिमैं, सदा फिर वेहाल ॥७॥ मानुष कैकै मद पिये, जानै धरम बलाय । आंख मूंदि कूब परै, तासौं कहा बसाय ॥७२॥ । १ दूसरोंका मांस । २ गंध । ३ सर्वस्व-सारा धन ।

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