Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ - - उपदेशाधिकार । परस्त्रोसगनिषेध । अपनी परतल देखिक, जमा अपने दर्द । तसा ही परनारिका, दुखी होन है मर्द ॥१२॥ निपट कठिन परतिय मिलन, मिल न पूरे होस । लोक लरै नृप ट्रेंड कर परे महत पुनि दोस ॥१३॥ ऊंचा पट लोक न गिर्ने, कर आंबरू दूर । आँगुन एक कुसीलनं, नाम होत गुन भूर ॥१४॥ कन्या फुनि परव्याहता, नपग्स अपग्स जात । मारी विभचारी गह, गख नाहि भात ॥९५|| कपट अपट तकिवा कर, मदा जोर मांजार ॥१६॥ भोग करें नाहीं डगे, पर पीट पंजार ॥९॥ विक कुील कुलवानकी, जासी डरत जहान । बतगवत लांग वटा, नाहिं रहत कुलकान ॥१७॥ ना सेई नाही छुई, रावन पाई घात ! चली जान निहा अनो, जगमैं भई विख्यात ॥९८॥ प्रथम सुभग मोहित सुगम, मध्य वृथा रम स्वाद । अंत विग्म दुख नाकना, विपन-विवाद अमाद ।।१९।। विसन लगा जा पुरुष, मो तो मदा खराब । जैसे हीरा एजुत, नाहीं पवे आव ||५००॥ इति उपदेशाधिकार। - १ इन्चत । २ यार-यभिचारी । ३ मार्जार-बिल्ली। ४जूते।५ बहालगताई इजतमे।कुलकी लाजादोपवाला।

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91