Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 62
________________ ४८ बुधजन सतसई dont पथ पूछतां भरम करें हर कोय ||४४ || मतसंगति में बैठनां, जनम सफल है जाय । मैले गेले जावतां, आ मैल लगाय ॥ ४५ ॥ मतसंगति आदर मिले, जगजन करें बखान । सोटा सँग लखि सन हैं, बाकी निशन आन ॥४६॥ येते गीत न कीजिये, जती लखपती वाल । ज्यारी चांरी तेलकरी, अॅमली अ बेहाल ||४७|| मित्रतना विश्वास सम, और न जगमै कोय | जो विमास का घात है, बडे अवामी लोय ॥४८॥ कठिन मित्रता जोरिये, जोर तोरिये नाहिं । तोरतें दोऊन के, दोष प्रगट है जाहिं ॥४९॥ विपत मैटिये मित्रकी, तन धन खरच मिजाज (९) । कहूं बांके बखत मैं, कर है तेरो काज ॥५०॥ मुखतै बोलै मिष्ट जो, उरमैं राखै घात । मीत नहीं वह दुष्ट है, तुरत त्यागिये भ्रात ॥ ५१ ॥ अपने सौ दुख जानकें, जे न दुखावें आन । ते सदैव सुखिया रहैं, या भाखी भगवान || ५२|| जुआ निषेध | जननी लोभ लवारकी, दारिद दादी जान | कूरा कलही कामिनी, जुआ विपतिकी खान ॥५३॥ - १ खराब रास्तेसे । २ विश्वास । ३ दूत - चुगलखोर । ४ चोर । ५ नशेबाज |

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