Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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४६
उपदेगाधिकार। घन नाम नाम धरम, मार्ग घी कुख्यान । धकाधम धनों की. विग धिा कई जहान ॥५४॥ बारीको जोस नजे. न मान पितु भ्रात । द्रव्य हर बाज लो, गोन बान कुनात ॥१५॥ धारी जाय न गज. लरिनमक व्यापार । मार्गकी पातीनि नहि. फिरता फिी गुंगार ॥५६॥ चांध ज्यान बीग डोनने काल । फवह चार पहिधी फेम माल ॥५७॥ अमुचि अरन की सानि नहें, रहै हाल बेहाल । तात मग्न : नरह, नन न जनाधार ॥२८॥ कहा गिननि नामान जा, पांडा मो सगर ।
मा गस्त पुरुषकी, क्यों हु है न और ॥५९॥ जमा पान चंडालक, नसा यावे सान । नीच उंच कुलकी नं, का होप पिठान ॥६॥
मांसानिये। हाड़ मांग मादानके, जाफा कामांमाहि । सो तो प्रगट ममान है, कांमा सामा नाहिं ।।६१॥ दूध दही धून धान फर, मुष्ट मिट वर सान। । ताकी तनक अवन मुम, सोटी मोटी आन ॥१२॥
जीर अनंता मामते, मागे श्रीभगवान । चालत काटत मामको हिंमा होमहान ॥६॥
१रसार-पराय । २ पानी-इज्जत। ३न्याल । ४ मांस।
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