Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 28
________________ बुधजन-सतसईउद्यम साहस धीरता, पराक्रमी मतिमान । एते गुन जा पुरुपमै, सो निरभै बलवान ॥२०॥ रोगी भोगी आलसी, वहमी हठी अज्ञान । ये गुन दारिदवानके, सदा रहत भयवान ॥२१॥ अछती आस विचारिक, छती देत छिटकाय । अछती मिलवौ हाथ नहिं, तब कोरे रह जाय ॥२२॥ विनय भक्ति कर सवलकी, निवल गोरै सम भाय । हितू होय जीना भला, घेर सदा दुखदाय ||२३|| नदीतीरको रुंखरा, करि विनु अंकुश नार। राजा मंत्री रहित, विगरत लगै न वार ॥२४॥ महाराज महावृक्षकी, सुखदा सीतल छाय । सेवत फल लाभ न तो, छाया तौ रह जाय ॥२५॥ अति खानेतें रोग है, अति बोलें ज्या मान । अति सोयें धनहानि है, अति मति करौ सयान ॥२६॥ झूठ कपट कायर अधिक, साहस चंचल अंग। गान सलज आरंभनिपुन, तियन तृपति रतिरंग ॥२७॥ दुगुण छुधा लज चौगुनी, षष्ठ गुनौ विवसाय । काम वसु गुनौ नारिके, वरन्यौ सहज सुभाय ॥२८॥ पतिचितहित अनुगामिनी, सलज सील कुलपाल । १.शक्की-सन्देह, करनेवाला। २ जो मौजूद नहीं। ३ गायके । ४ वृक्ष । ५ हाथी । ६ जाता है । ७ सजाना

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