Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 49
________________ उपदेशाधिकार। ___३५ अब मतसंगतिके किये, है शिवपथका लाभ ॥१७॥ नीति तज नहिं सतपुरुष, जो धन मिल करोर । कुल तिय वन न कंचनी, भुगतै विपदा घोर ॥१८॥ नीति धरै निरभ मुग्नी, जगजन करें मराह । भंड जनम अनीतित, दंड लेत नग्नाह ॥१९॥ नीतिवान नीति न तजे, सह भूस तिसं त्रास । ज्यों हंसा मुक्ता विना, वनमर कर निवास ॥२०॥ लखि अनीति सुतकी तजे, फिर लोकमें हीन । मुसलमान हिंदू मरव, लखे नीति आधीन ॥२१॥ जे विगरे ते स्वादत, तजै स्वाद सुस होय । मीन परेवा मकर हरि, पकरि लेत हर कोय ॥२२॥ खाद लखें रोग न मिटें, कीयें कुपथ अकाज । नात कुर्टकी पीजिये, साजे लूखा नाज ॥२३॥ अमृत उत्लोदर अमन, विप सम खान अपाय । वह पुष्ट तन बल करें, यात गेग बढाय ॥२४॥ भूखरोगमंटन अमन, वसन हग्नकौं सीत । १रंढी वेश्या। २ प्रशंसा। ३ चेइजत होता है।४ नरनाथ-राजा । ५प्यास । ६ एक कड़वी दवाई ७ खाइये। ८ कम भोजन करना कुछ खाली पेट रहना । खूब अधाकर खा लेना।

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