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बुधजन-सतसईदेश काल वय देखिकै, करि हैं बैद इलाज । त्यौं गेही घर बसि करें, धर्म कर्मका काज ॥१०॥ प्रथम धरम पीछे अरथ, बहुरि कामको सेय । अन्त मोक्ष साधै सुधी, सो अविचल सुख लेय ॥११॥ धर्म मोक्षको भूलिकै, कारज करि है कोय । सो परभव विपदा लहै, या भव निंदक होय ॥१२॥ सक्ति समालिर कीजिये, दान धर्म कुल काज । जस पावै मतलव सधै, मुखिया रहे मिजाज ॥१३॥ विना विचारे सक्तिके, करै न कारज होय । थाह विना ज्यौं नदिनिमै, परै सु चूड़े सोय ॥१४॥ अलभ मिल्यौ ना लीजिये, लये होत बहाल । वनमैं चावरकों चुनें, बॅधे परेवा जाल ॥१५॥ जैसी संगति कीजिये, तैसा लै परिनाम | तीर गहैं तोके तुरत, माला” ले नाम ॥१६॥ जनम अनेक कुसंगवस, लीन होय खराव ।
१ गृहस्थी । २ निन्द्य-बदनाम।३सँभाल करके अर्थात् जितनी शक्ति हो, उतना। ४ एक व्याधा जंगलमे चावल फैला कर और उसपर जाल विछाकर छुप रहा था, चावलको देख कबूतर (परेवा) चुगनेके लिये आ बैठे, और उस जालमें फँस गये। इसकी कथा हितोपदेशमे है।५ ताकता है, निशाना साधता है।