Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 50
________________ बुधजन-सतसईअति विनान नहिं कीजिये, मिलै सो लीजे मीत ॥२५॥ होनी प्रापति सो मिलै, तामैं फेर न सार । तिसना किये कलेस है, सुखी संतोपविचार ॥२६॥ किते द्यौस भोगत भये, क्यों हू त्रपत न पाय । त्रिपत होत संतोपसौं, पुन्य बढे 'अघ जाय ॥२७॥ पंडित मूरख दो जनै, भोगत भोग समान | पंडित समवृति ममत विन, मूरख हरख अमान ॥२८॥ सूत्र बांचि उपदेश सुनि, तजै न आप कपाय | जान पूछि कूवै परे, तिनसौं कहा बसाय ॥२९॥ विनसमुझे ते समझसी, समझे समझे नाहिं। काचे घट माटी लगे, पाके लागै नाहिं ॥३०॥ रुचितें सीखें ज्ञान है, रुचि विन ज्ञान न होय । सुधा घट वरसत भरै, औंधा भरै न कोय ॥३१॥ सांच कहै दूपन मिटै, नातर दोष न जाय । ज्यौंकी त्यौं रोगी कहै, ताको बनै उपाय ॥३२॥ करना जो कहना नहीं, पूछ मारग आन । नीसाना कैसे मरे, ताकै आन ही थान ॥३३॥ औरनकौं बहकात है, करे न ज्ञान प्रकास । गॉडर आनी ऊनकौं, बांधी चरै कपास ॥३४॥ .. १ विज्ञान-ज्यादा विचार करना । २ अप्रमाण-बहुत।। ३ बेसमझ । ४ देखे । ५ भेड़।

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