Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 12
________________ १० बुधजन-सतसईनहीं हैं। पदोंकी भाषा विलकुल जयपुरी नहीं है, पर कुछ पद आपने ठेद जयपुरी भाषामें ही लिखे हैं । उनमेंसे कुछ पद हम पाठकोंके अवलोकनार्थ उद्धृत करते है। चाल 'तिताला' और ठौर क्यों हेरत प्यारा, तेरे हि घटमें जाननहारा ।। और ।। टेक ।। चलन हलन थल वास एकता, जात्यान्तर ते न्यारा न्यारा ॥ और ॥१॥ मोह उदय रागी द्वेपी है, क्रोधादिकका सरजन हारा । भ्रमत फिरत चारौं गति भीतर, जनम मरन मोगत दुख भारा । और ॥२॥ गुरु उपदेश लखै पद आपा, तबहिं विभाव करै परिहारा। है एकाकी "बुधजन" निश्चिय, पावै शिवपुर सुखद अपारा ॥ और ॥३॥ राग 'पूरवी' भजन विन यों ही जनम गमायो । भजन ॥ टेक ॥ पानी पैल्यां पाल न बांधी, फिर पीछे पछतायो॥ भजन ॥१॥ रामा-मोह भये दिन खोवत, आशापाश उधायो ।

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