Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ - बुधजन-सतसईएक चरनहू नित पढे, तो काटे अज्ञान । पनिहारीकी नेजसौं, सहज कटे पापाण ॥ (बुधजन) करत करत अभ्यासके, जड़मति होत सुजान । रसरी आवत जाततें, सिल पर होत निगान ।। (रहीम) सीख सरलको दीजिये, विकट मिलें दुख होय । वया सीख कपिकों दई, दियो घोंसला खोय ।। (बुधजन) सीख वाहिको दीजिये, जाको सीख सुहाय । सीख न दीजे वॉदग, वैया घर वह जाय ॥ सींग पूंछ दिन बैल हे, मानुप बिना विवेक । भख्य अभख समझे नहीं, भगिनी भामिनि एक ॥ मुखः बोले मिष्ट जो, उरमै राखै घात । मीत नहीं वह दुष्ट है, तुरत त्यागिये भ्रात ।। जननी लोभ लवारकी, दारिद दादी जान । कूरा कलही कामिनी, जुआ विपतिकी खान ॥ स्थार, सिंह, राक्षस, अधम, तिनका भख है मांस । मोक्ष होन लायक मनुप, गहैं न याकी वास ॥ मदिरा पी मत्ता मलिन, लोटे वीच बजार। मुखमें मूतँ कूकरा, चाटें बिना विचार ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91