Book Title: Budhjan Satsai
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 8
________________ बुधजन-सतसईबड़ी धूमधामके साथ हुआ, सब काम समाप्त हो जानेपर यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि दूसरा मन्दिर किसके नामसे प्रख्यात हो। दीवानजी उसपर कविवरका नाम लिखवाना चाहते थे, परन्तु उनका कहना था, कि मेरा इसपर कुछ भी अधिकार नहीं है। दीवानजीका ही नाम लिखा जाना चाहिये । परन्तु दीवानजीने भदीचन्द्रजीका नाम ही खुदवाया, और इस ही नामसे इस मन्दिरको विख्यात किया । ___ हमारे चरित्रनायक उच्चकोटिके पंडित थे, आपकी शास्त्र बाँचने तथा शंका समाधान करनेकी शैली बहुत ही श्रेष्ठ तथा रुचिकर थी । आपकी शास्त्रसभामें अन्यमतावलम्बी भी आते थे। आप उनकी शंकाओंका निवारण बड़ी खूबीके साथ करते थे। प्रतिमा सफेद संगमरमरके बने हुए समोशरण में सुशोभित हैं। आपके मन्दिरजीकी विम्वप्रतिष्ठा सं० १८६४ में हुई थी। आपने अपने मन्दिरजीकी दीवार पर यह उपदेश खुदवाया था "समय पाय चेत भाई-(२)मोह तोड़ विषय छोड़-(३) भोग घटा।" के इन दोनों मन्दिरोंमें गुमानपंथाम्नाय है । दीवानजा तथा कविवर भदोचन्द्रजी गुमानपंथानायी थे, दीवानजोका मन्दिर जयपुरमें छोटेदीवानजीके मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। - -

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