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देवानुरागशतक ।
ऐसे तो कहन न बने, मो उर निवसों आय । तातें मोकूं चरनतट, लीजै आप बसाय | ५६ || तो माँ और न ना मिल्यो, धाय थक्या चहूँ ओर । ये मेरेँ गाड़ी गड़ी, तुम ही हो चितचोर ॥५७॥ बहुत चकत डरपत रहूँ, थोरी कही सुनै न । तरफत दुखिया दीन लखि, ढीले रहे च न ॥५८॥ रखूं रेग्वरो मुजस मुनि, तारन-तरन जिहाज | भव बोरत राखें रहै, तोरी मोरी लाज ॥५९॥ वत जलधि जिहाज गिरि, तारौ नृप श्रीपाल । वाही किरपा कीजिये, वोही मेरो हाल ॥ ६० ॥ तोहि छोरिकै आनकूं, नर्मू न दीनदयाल | जैसे तैसे कीजिये, मेरौ तौ प्रतिपाल ॥ ६१ ॥ विन मतलब बहुते अधम, तारि ढये स्वयमेव । त्यों मेरौ कारज सुगम, कर देवनके देव ॥ ६२ ॥ निंदी भावी जस करों, नाहीं कछु परवाह । लगन लगी जात न तजी, कीजो तुम निरवाह ॥ ६३॥ तुम त्यागि और न भई, मुनिये दीनदयाल । महाराज की सेव तजि, से कौन कॅगाल ||६४ || जाछिन तुम मन आ बसे, आनंदवन भगवान | दुख दावानल मिट गयौ, कीनों अमृतपान ॥ ६५ ॥
१ श्रापका ।