________________ 26 भीमसेन चरित्र तत्पश्चात् मानसिंह ने अपने समीप रहे स्वर्ण-सिंहासन पर आसन ग्रहण करने का संकेत किया। सुमित्र ने सिंहासन पर बैठने से पूर्व राजा मानसिंह की सेवा में नजराना पेश किया और विनीत स्वर में कहा : “हे महाप्रतापी और पराक्रमी नरेश! मगधाधिपति महाभट्ट राजा गुणसेन ने आपकी सेवा में यह नजराना प्रेषित किया है। जिसे आप स्वीकार कर मुझे अनुग्रहीत करें।" / "अहो! महाराज गुणसेन ने मेरा स्मरण कर यह उपहार भेजा है। इसके लिये एक बार नहीं शतशः धन्यवाद! कहिये आपके नरेश ने मेरे लिये क्या काम बताया है?" मानसिंह ने बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए, अधीर हो, पूछा। "सेवा तो हम करगे राजन्! शेष आप जैसे महापुरुष तो केवल उपासना करने के लिये होते हैं। वैसे मैं एक बड़े ही शुभ व मंगल कार्य के लिये राज दरबार में आया हूँ। आशा है, आप जरूर इस कार्य में सहयोग प्रदान कर मुझे उपकृत करेंगे।" "महानुभाव! मेरे योग्य काम होगा तो अवश्य करूगा। क्या काम है? आप निस्संकोच कहें। और हाँ, आपने अपना परिचय तो दिया ही नहीं?" __ "मेरा नाम सुमित्र है, महाराज! मैं मगध का राजदूत हूँ। मेरे स्वामीने एक महत्वपूर्ण कार्य के लिये मुझे देशान्तर भेजा है। देश-विदेश में भ्रमण करते हुए मैंने आपकी यथेष्ट कीर्ति गाथा सुनी है। साथ साथ आपकी सुपुत्रियों की तथा राजमाता की प्रशंसा भी काफी सुनी है। फल स्वरूप अन्य देशों में अधिक न रूकते हए यहाँ चला आया हूँ।" वास्तव में यहाँ आकर तुमने बहुत अच्छा कार्य किया है। शेष तुम्हारे महाराजने जिस कार्य के लिये भेजा है, वह कार्य मेरे लायक हो तो, अवश्य बता दो। हम किसी भी कीमत पर तुम्हें खाली हाथ नहीं भेजेंगे।" "यह आप क्या कह रहे हैं राजन्। आप ही तो यह काम कर सकते है। यदि आपको ही अपने कार्य से विदित न करूं तो भला मेरा काम पूर्ण कैसे हो सकता है?" सचमुच बड़े चालाक और विचक्षण हो सुमित्र! जिस राज्यमें तुम्हारे सदृश दूत हो, वह भला कितना भाग्यशाली व प्रतापी होगा।" “आप भी राजन स्वामी से किसी भी प्रकार कम नहीं हैं। अरे, आपका डंका तो देश-विदेश बजता है। और तो और नगरवासी उठते ही आपका स्मरण करते है। परन्तु मेरे स्वामी व आपके बीच एक बड़ा भेद अवश्य है।" "वह भला कौन सा?" "मेरे स्वामी के दो राजकुमार हैं। एक से एक बढ़कर और महा पराक्रमी। बुद्धि में तो साक्षात वृहस्पति। वीर धीर व साहसी भी उतने ही। उनके लक्ष्यभेद का तो P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust