________________ 154 भीमसेन चरित्र पूर्व जन्म के पुण्य प्रताप से ही यह मानव जन्म प्राप्त होता है। और यह जन्म भा बार-बार नहीं मिलता, इसी कारण वश जीव-मात्र को सतत जागृत रहना चाहिए। अपनी आत्मा को हर पल हर प्रकार से सावधान रखना चाहिए। वैसे मानव जन्म अति दुर्लभ है। इसमें भी जैन कुल में जन्म प्राप्त करना, जन्म धारण कर मोक्ष दाता मुनि भगवंतो का सत्संग करना, उनकी वाणी का श्रवण करना उस पर अनन्य श्रद्धा रखना और श्रद्धा उत्पन्न होने के उपरांत उसका अनुसरण करना। यह सब अत्यंत दुर्लभ है। किन्तु जिनको ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ है वह आत्मा अवश्य ही पुण्यात्मा है। किन्तु ऐसा उत्कृष्ट मानव भव प्राप्त करके भी जो आत्म धर्म की आराधना नहीं करते है। वे इस भव को व्यर्थ ही गँवा देते है। हाथ में आये चिन्तामणी रल को फेंक देते है। __ हे भव्यजन्! लक्ष्मी चंचल है आयुष्य भी चंचल है संसार के सारे ही सुख विद्युत्-लता के समान क्षणिक है। ऐसे नाशवान पदार्थो के लिये अपना जीवन नष्ट करना निरी अज्ञानता ही है। ज्ञानी भगवंतो ने धर्म हीन पुरुषों को पशुओं की उपमा दी है। जो धर्म का सेवन नहीं करते, वे मानव देही होते हुए भी पशु ही है। ____ अतः हे भद्र! तुम मानव बनो। मानव योग्य कर्तव्यों का निष्ठा के साथ पालन करो। आत्मधर्म में स्थिर बनो। धर्म ही वह रामबाण औषधि है, जो सभी दुःखों का अन्त लाती है। आत्मधर्म की आराधना से भव्यात्माएँ इस संसार से पार लग जाते है, जन्म मरण के दुःखों से मानव को मुक्ति मिल जाती है। मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, और आत्मा परमात्मा में मिल जाती है। महानुभावों यह कदापि न भूलो कि अनादि काल से आसा, कर्म रुपी आवरण से आवृत्त है। अतः इसे तप की अग्नि से शुद्ध कर लो। वर्धमान तप सभी तपों में उत्तम तप है। इसकी आराधना से निकाचित कर्मों का क्षय होता है। उत्कृष्ट आराधना करने से जीव तीर्थंकर का पद भी प्राप्त कर सकता है। इनका आचरण करते हुए वह कर्म नाश कर मुक्ति का वरण कर सकता है। ___ इस तप की विधि निम्न प्रकार से हैं, आरम्भ में एक आयंबिल व एक उपवास। उसके पश्चात दो आयंबिल और एक उपवास फिर तीन आयंबिल और एक उपवास और इस तरह बढ़ते हुए पाँच आयंबिल और एक उपवास करके पारणा कर सकते है। यों एक सौ आयंबिल व एक उपवास कर जो तप करता है उसे वर्धमान तप कहा जाता है। इसके आराधकों को प्रतिदिन बीस लोगस्स का कायोत्सर्ग करना चाहिये। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust