Book Title: Bhimsen Charitra Hindi
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 280
________________ 270 भीमसेन चरित्र साथ ही देहिक आसक्ति से भला क्या लाभ? इससे तो जन्म-जन्मांतर एक योनि से दूसरी योनि में निरंतर भटकते ही रहना है न? . .. किन्तु नहीं, अब मुझे अधिक भव-भ्रमण करने की लालसा नहीं है। अब समय आ गया है कि, सांसारिक पाशों को तोड दूं। सभी कर्मों का समता भाव से क्षय करूँ। अब न जन्म की कामना है, ना ही मृत्यु की। न दुःख चाहिए, ना ही सुख-साहिबी, न संताप सहना है, ना ही आमोद-प्रमोद में लिप्त रहना है। __मैं एक आत्मा हूँ और आत्मा बन कर ही जीवित रहना है। नश्वर काया को सदा के लिए नष्ट कर देना है और आत्मा को आत्म-तत्त्व में विलीन कर सदैव... सर्वथा उसका अंत लाना है... उसे संसार से समाधि में अन्तर्धान कर देना है। . ___ "देवि! तुम धन्य हो। धन्य है तुम्हारा जीवन। तुम्हारी भावना अत्यंत अनुमोदनीय . एवम् प्रशंसनीय है। मैं तुम्हें हार्दिक आशीर्वाद हूँ। तुम अपनी भावना को अवश्य सार्थक करो। भौतिक जीवन का त्याग कर कर्म क्षय करो और मुक्ति-पद की अनुगामिनी बनो।" भीमसेन ने सुशीला को प्रोत्साहित करते हुए सोत्साह कहा। भीमसेन और सुशीला ने असार संसार का परित्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण करने का दृढ संकल्प किया। : . . .. .. दूसरे दिन संदेश वाहक प्रेषित कर विजयसेन एवम् देवी सुलोचना को अपनी आंतरिक इच्छा से अवगत किया। विजयसेन और सुलोचना तुरंत राजगृही आ पहुँचे। वे भी इस शुभ-कार्य में सम्मिलित होने के लिए तत्पर बन गये। :: : ___ तत्पश्चात् भीमसेन ने देवसेन और केतुसेन को बुलाया। उन्हें अपने निर्णय से अवगत किया और शुभ मुहूर्त में राजसी आडम्बर के साथ देवसेन का राज्याभिषेक किया। ... .. . __भीमसेन ने इस प्रसंग पर देवसेन को अंतिम सीख देते हुए गंभीर स्वर में कहा : "वत्स! विगत कई वर्षों तक मैंने राजगृही एवं यहाँ के प्रजाजनों पर शासन किया है। जिस तरह मैंने तुम्हारा संवर्धन कर तुम्हारे जीवन का यथोचित विकास किया है। ठीक उसी तरह प्रायः मैंने पुत्रवत् राजगृही जनों का कल्याण तथा हित करने का अविरत प्रयत्न किया है। अतः भविष्य में तुम भी इनका पुत्रवत् जतन, संरक्षण और कल्याण करना। प्रेम और ममता से उनका संवर्धन करना। " ... संकट के समय भूल कर भी कभी धैर्य च्युत न होना। धैर्य तो धीर-वीर पुरुषों का आभूषण है। और प्रजा पर शासन करते समय राजा का एक अत्यंत आवश्यक गुण है। अतः अपने कर्म में तनिक भी विचलित हुए बिना हमेशा अटूट धैर्य, शांति तथा शौर्य से काम लेना। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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