Book Title: Bhimsen Charitra Hindi
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 281
________________ दुःख भरा संसार! 271 राज्य-प्रशासन यह सर्वदा एक अटपटा विषय है। राज्य करते समय भूल कर भी नीति-पथ का त्याग न करना। अनीति से कभी काम न लेना। क्योंकि राजकाज में अनीति अनेक आपत्तियों का मूल है। ठीक वैसे ही गुण-ग्राहकता में प्रायः अग्रसर रहना। गुणविहीन जीवन भार स्वरूप हैं। ऐश्वर्य एवम् वैभव से उन्मत्त हो, अवगुण धारण कर कभी अपने जीवन को बर्बाद न करना। राजसंपत्ति स्व-संपत्ति न हो जन-संपत्ति है, इस सूत्र को कभी न भूलना। अतः राज-संपत्ति का उपयोग जन-कल्याणकारी कार्यों में ही करना। प्रत्येक कार्य करते समय अपने मंत्री तथा सहयोगियों से राय-परामर्श अवश्य करना। उन्हें साथ ले कर शुभ कार्यों को अंजाम देना। संकट-समय उनसे विचार-विनिमय अवश्य करना। अपने मन में हमेशा प्रेम-भाव को बनाये रखना। छोटे-बडों में भेद करने के बजाय गुण-अवगुणों में भेद करना। अपने से बडे-बूढों का उचित मान-सम्मान करना, उनका आदर-सत्कार करना और उनकी हितकारी वाणी का जीवन में सदा आचरण करना। ... प्रशासन-कार्य करते समय तुम्हें अनेकविध पेचीदी समस्या और गुत्थियों का सामना करना पडेगा... जनता के शिकवा-शिकायतों को शांति से सुनना पडेगा। न्याय के लिए लोग गुहार करेंगे। ऐसे समय प्रायः विवेक से काम लेना। सत्ता के उपयोग के बजाय प्रायः आत्मा की आवाज को महत्त्व देना। सत्ता और शासन के अहंकार से अपने आप को भूल न जाना। हमेशा विनयी और विवेकप्रिय बनना। अधिकार क उपयोग शासन को सुव्यवस्थित एवम् सुसंचालन के लिए करना। ....... . .... युद्ध का आश्रय कभी न लेना। स्व-रक्षा और पर-संरक्षण के लिए युद्ध का आश्रय-ग्रहण करना। नित नये राज्यों पर विजय प्राप्त करने के लोभ में निरपराधी जीवों की प्राणहानि न करना... अहंकार वंश रक्त-रंजित धरां मत करना। यदि युद्ध करने का आवेश-ज्वर चढ जाए तो अपनेआप से युद्ध करना। तुम्हारे मन को दिन दुगुना रात चौगुना निर्बल करनेवाले, तुम्हें दुर्गति में घसीटनेवाले और तुम्हारी आत्मा को कलंकित करनेवाले आंतर-शत्रुओं के साथ घमासान युद्ध करना। उन पर विजयश्री प्राप्त कर आत्म-साम्राज्य का यशस्वी विजेता बनना। " राज्य-वैभव में फंस कर धर्म को विस्मरण न कर देना। स्मरण रहे, तुम प्रथम मानव हो और मानवता यह तुम्हारा आद्य धर्म है। भूल कर भी कभी धर्म-च्युत न होना। ध्यान रहे, रांजा के रूप में तुम्हारे कईं कर्तव्य धर्म हैं। अतः धर्म का अवश्य यथार्थ पालन करना। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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