Book Title: Bhimsen Charitra Hindi
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 285
________________ टूटते - बंधन 275 उपरोक्त उद्देश्य को मन में संजो कर ही वे राजगृही पधारे थे। यहाँ आ कर उनकी आत्म-भावना अधिकाधिक तीव्र बन गयी। बारह भावनाओं को साकार करती हुई आत्मा उल्लसित होने लगी। आत्मा का अमरत्व, उसका एकत्व, उसकी अक्षयता ठीक वैसे ही आत्मा का आत्मा में विलीनीकरण यही शाश्वत सत्य है। वे ऐसी उच्च एवम् शुध्ध भावना में लीन-तल्लीन थे कि, सहसा उनके चार घाती कर्म के बंधन टूट गये। क्षणार्ध में ही अज्ञानान्धकार छिन्न-भिन्न हो गया और परम ज्ञान का सूर्य उदित हो गया। मुनिश्री भीमसेन को केवल-ज्ञान की प्राप्ति हुयी। लोकालोक देदीप्यमान हो गया। सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवम् अतींद्रिय पदार्थो का साक्षात्कार हुआ। कुछ भी अज्ञात न रहा। सब प्रगट हो गया। केवलज्ञान के परम प्रताप से इन्द्र देव का अटल-अचल सिंहासन डोल उठा। देवराज इन्द्र को रहस्यमय संकेत प्राप्त हुए। उन्होंने अवधिज्ञान का उपयोग कर वास्तविकता का पता लगाने का निर्णय किया। सहज अन्वेषण से उन्हें ज्ञात हुआ कि, पृथ्वीलोक में आराधनाशील मुनिराज भीमसेन को केवलज्ञान की प्राप्ति हुयी है। इन्द्र के आनन्द का पारावार न रहा। उन्होंने अपनी दैवी शक्ति का प्रयोग कर राजगृही पर सुगंधित जल की वर्षा की। सुवासित पुष्पों की वृष्टि की और अन्य देवताओं के साथ दुंदुभिनाद करते हुए सोत्साह पृथ्वीलोक पर उतर आये। तत्पश्चात् जिस स्थान पर केवलज्ञान की प्राप्ति हुयी थी। उक्त स्थान से एक योजन तक के क्षेत्र को सुगंधित कर उन्होंने शीतल छाया की व्यवस्था की और सुवर्ण कमल की रचना कर केवली भगवंत का स्तुति-पाठ करने लगे। दुंदुभिनाद सुनते ही राजगृही के प्रजाजन आवाज की दिशा में दौड पडे। उद्यानपाल ने देवसेन व केतुसेन को शुभ समाचार प्रदान कर बधाई दी। शुभ समाचार प्राप्त होते ही देवसेन-केतुसेन भी अविलम्ब सदल बल, सपरिवार अपने पिताश्री, केवली भगवंत के वदनार्थ एवम् धर्मवाणी श्रवण करने के उद्देश्य से दौडे आये। ___भगवंत के प्रेम प्रभाव से प्रभावित पशु-पक्षियों में भी प्रभु के प्रत्यक्ष दर्शन-वंदन के लिए होड लग गयी। उस समय सब परम्परागत शत्रुता और पारस्परिक वैर भाव को विस्मरण कर गये। सब निर्भय हो, एक-दूसरे के साथ आसनस्थ हुए। देव, दानव, मानव और तिर्यंच जीवों की महती भीड से पर्षदा खचाखच भर गयी। केवली भगवंत की भव-तारक वाणी के श्रवणार्थ दसों दिशाओं से समस्त जीव-सृष्टि उमड पडी। केवली भगवंत श्री भीमसेन की धर्म-वाणी - अमृत-रस की भाँति सर्वत्र प्रवाहित होने लगी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Tast

Loading...

Page Navigation
1 ... 283 284 285 286 287 288 289 290