Book Title: Bhimsen Charitra Hindi
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 278
________________ 268 भीमसेन चरित्र आह! कैसा कर्म का अटल न्याय है! एक-एक पाप-कर्म मुझे भोगना पडा। उसमें से मैं अपने आप को बचा नहीं सका। जो-जो कर्म किये उन सबका हिसाब चुकाना पड़ा। किन्तु इन पाप-कर्मों को भोगने में न किसीने मेरा साथ दिया और ना ही प्रीतिमति मुझे उबार सकी। अरे, मेरी अतुल संपत्ति एवम् असीम शक्ति भी मुझे उसके जाल से मुक्त नहीं कर सकी! मेरे किये मुझे ही भुगतने पडे।' भीमसेन अपने एक-एक कर्म का स्मरण कर मन ही मन पश्चाताप-दग्ध हो रहा था। सुशीला की आँखें भी डबडबा गयीं। वह अपने प्रीतिमति के भव को स्मरण कर पश्चाताप की अग्नि में सुलग रही थी। 'स्वयं ने देवरानी का विश्वासघात कर उसके अलंकार छिपा रखे, वैश्य-पत्नी पर अकारण ही जुल्म ढोकर उसे घर से बाहर निकाल दिया, ऐसे जैसे क्रूर कर्मों को याद कर वह रह-रह कर अपने पाप की निंदा करने लगी। उसने भी अनुभव किया कि, 'जो जीव यहाँ जैसे कर्म करता हैं उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है। कर्म के पाश से न कोई बचा है और ना ही कभी बच सकता है। पाप भले ही निर्दोष भाव से किया हो अथवा पूर्व बैमनस्य के वशीभूत हो किया हो... किन्तु पाप पाप ही है और उसके जो परिणाम हो, उसे भुगतना ही पड़ता है। किये कर्मों से दुनिया की कोई ताकात बच नहीं सकती।' इधर सुनंदा एवम् विमला दासी भी इसी प्रकार की चिंतन-यात्रा पर पल-पल आगे बढती आत्म-परीक्षा में लीन थीं। उनका अंतःकरण भी अपने पूर्वभव का वृत्तान्त अवगत कर धर्मभावना से ओत-प्रोत हो रहा था। जबकि भीमसेन के पूर्वभव का वृतान्त सुन, पर्षदा में उपस्थित अन्य जन समुदाय भी संसार की असारता, कर्मसत्ता, कर्म के शुभाशुभ परिणामादि पर गहन चिंतन करने में तल्लीन था। साथ ही अपने द्वारा किये गये पाप-कर्मों के कारण भवान्तर में उनकी क्या अवस्था होगी, यह सोच कर कम्पित हो रहा था। पूर्व भव का वृतान्त सुन, संसार और संसार के यश-वैभव के प्रति भीमसेन के मन में रही-सही आसक्ति भी नामशेष हो गयी। उसका जी संसार से उचट गया। "क्या यही संसार है और इसी में हमें निरंतर खोये रहना है? और यहाँ रहकर आखिर में क्या मिलेगा? सिवाय दुःख और पाप के इस संसार में है ही क्या? यहाँ पर दृष्टिगत सुख भी प्रायः दुःख ही दुःख है। अरे, सुख के आवरण तले संसार में दुःख ही ढंका हुआ है। में होश खो, गँवा दिया तो? ऐश्वर्य तथा आराम में लिप्त हो, बिगाड दिया तो? आलस्य और आमोद-प्रमोद में अकारण ही व्यतीत कर दिया तो? P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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