Book Title: Bhimsen Charitra Hindi
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 276
________________ 266 भीमसेन चरित्र फलतः आयुष्य पूर्ण कर दोनों ने स्वर्ग गमन किया। . हे भीमसेन! कामजित् ने स्वर्ग से च्युत हो, भरतक्षेत्र में राजगृही के राजकुल में जन्म लिया। वह कामजित और कोई नहीं, बल्कि स्वयं तुम ही हो...! भीमसेन। जबकि प्रजापाल के जीव ने राजा हरिषेण का रूप धारण किया। प्रीतिमति देवलोक से च्युत हो, महारानी सुशीला बनी और विद्युन्मति सुरसुंदरी। मृत्योपरांत देवदत्ता दासी सुनंदा और कामदत्ता विमला दासी के रूप में अवतीर्ण हुयी। मंत्रीश्वर का जीव देवसेन बना और वसुभूति का जीव केतुसेन। ___ पूर्व भव में तुमने तीन-तीन बार मुनि भगवंत की अवहेलना की थी। फलस्वरूप इस भव में तुम्हें तीन-तीन बार संपदाहीन होना पड़ा। इसी तरह उक्त भव में तुमने पत्नी के साथ वैश्य की रक्षा की थी और तुम्हारी पत्नी ने बिना किसी कारण वैश्य-पली को व्यर्थ ही दंडित किया था। अतः इस भव में वही जीव लक्ष्मीपति बना और वैश्य-पली सुभद्रा बनी। उन्होंने विगत भव का प्रतिशोध इस भव में लिया। पूर्वभव में तुम पति-पली ने विश्वासघात कर कनिष्ठ भ्राता के अलंकार हडप कर ये। फलतः इस भव में उन्होंने तुम्हें राज्यविहीन कर दिया। अतः हे राजन! अब भी प्रतिबोध ग्रहण कर और कर्म की गति को पहचान। जीव जो भी कर्म-बंधन करता है उसे भुगते बिना कर्म का क्षय नहीं होता। पूर्वभव में तुम्हारे द्वारा किये गये अशुभ कर्मों को इस भव में तुमने भोग लिया है... भुगत लिया है। अतः अब नये सिरे से पुनः कर्म-बंधन न हो, साथ ही सकल कर्मों का क्षय हो जाए इसकी सावधानी बरतते हुए नित्य उद्यमशील रहो। . नित्य नियमपूर्वक धर्माराधना करो। स्मरण रहे. जहाँ धर्म है वहाँ जय है। जो साँप की भाँति प्रायः संसर्ग का परित्याग करता है, प्रेत की तरह दूर से भी युवती का दर्शन नहीं करता और जो काम-वासना की आसक्ति को विष समान समझता है, ऐसा धीर और वीर पुरुष हर स्थान पर विजयश्री प्राप्त करता है और मृत्योपरांत मोक्ष-पद का अधिकारी बनता है। अज्ञान रूपी पंक से उत्पन्न, तत्त्वहीन ठीक वैसे ही दुःख का एकमेव केन्द्रस्थान और जन्म, जरा व मृत्यु से युक्त ऐसे सांसारिक बंधनों को अशाश्वत... अनित्य समझो। और ज्ञान रूपी खङ्ग-प्रहार से उसके समस्त बंधन काट दो। इस लोक में सुविधियुक्त सेवित धर्म त्रिविध ताप का हरण करता है : ऐसा धर्म पिता की भाँति हमारा परम हितकारी है और मोक्ष-मार्ग के पथिक के लिए अपूर्व पाथेय है। ___ अतः हे भव्यजनो! तन, मन व वचन से तुम्हें ऐसे भव्य एवम् दिव्य धर्म की उत्कट आराधना करने में अहर्निश निमग्न रहना चाहिए। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290