________________ भीमसेन चरित्र उपार्जन में लगा दो। _____ आचार्य भगवंत की मंगल व मंजुल वाणी सुनकर भीमसेन के सभी परिताप, शांत हो गये है। मन की समस्त निर्बलता, निराशा क्षणार्ध में ही भस्मीभूत हो गई। उसकी आत्मा अपने आप में अदभुत शान्ति अनुभव करने लगी। दुःख से प्रवाहित काया में ताजगी का संचार हुआ। . "गुरुदेव! आज मेरा जन्म सफल हो गया। आपके दर्शनमात्र से ही मेरे सम्पूर्ण दुःखों का नाश हो गया। आपका कथन शत-प्रतिशत सत्य है। सुख व दुःख तो कर्माधीन है। जीवन का अन्त कर देने मात्र से कर्मों से छुटकारा नहीं मिल सकता। मन की दुर्बलता के कारण ही मैं ऐसा महा पातक करने के लिए तत्पर हुआ था। भीमसेन ने पुनः पंचांग प्रणिपात पूर्वक उन्हे वंदना की। राजन! भविष्य में तुम अपने आत्म धर्म को कभी विस्मरण न करना। उसकी सतत आराधना करना।" और परम तारक आचार्य भगवंत ने गोचरी जाने के लिये पाँव बढ़ाये| "गुरुदेव! मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कर मुझ पर उपकार करे।"आचार्य श्री को गोचरी के लिये जाते जानकर भीमसेन ने विनती की। | "कहो राजन! क्या प्रार्थना है?" "गुरुदेव! मैं अपने लिये व सन्यासी महात्मा के लिए शुद्ध प्रासुक भोजन लेकर आया हूँ, निराशा के कारण मैंने भोजन का स्पर्श तक नहीं किया। आपके उपयोग योग्य ही अन्न है, अतः यदि गोचरी का लाभ मुझे प्रदान करें तो मेरा जीवन सार्थक हो जायेगा। ___आचार्य भगवंत ने धर्मलाभ दिया। शुद्ध भावना और श्रद्धान्वित भाव से भीमसेन ने पूज्य आचार्यश्री को गोचरी प्रदान की। यह करते हुए उसकी आँखों से आनन्द के आँसु छलक पड़े। उसका हृदय शुभ भावना से पुलकित हो उठा। __ पूज्य आचार्यश्री ने गोचरी प्राप्त कर धर्मलाभ दिया। उसी समय नील गगन में सहसा देव दुंभी गूंज उठी। देवताओं ने परिजातक पुष्पों की वृष्टि की सुगन्धित जल की रिमरिम वर्षा हुई। दिव्य वस्त्रों की बरसात की। और स्वर्ण मुद्राओं की वृष्टि कर बुलन्द स्वर में "अहो दानं"! की घोषणा करते हुए धर्मघोषसूरिमहाराज की जय जयकार से दिग-दिगन्त को गूंजा दिया। तत्पश्चात् सभी देवी-देवताओं ने विधिपूर्वक आचार्य भगवंत की वंदना की। भीमसेन की उसके सुपात्रदान के लिये भूरि-भूरि प्रशंसा की और मूल्यवान वस्त्र व बहुमूल्य अलंकार प्रदान कर उसकी उत्तम भक्ति की। "वास्तव में मानव भव उत्तम है। मोक्ष में जानेवाला यही एक मात्र मार्ग है।" महा मानव भीमसेन की जय हो इस प्रकार जयनाद करते हुए देवी देवता क्षणार्ध में ही अदृश्य हो गये। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust