________________ 254 भीमसेन चरित्र "राजन्! तुम्हारे अपूर्व धैर्य एवम् शौर्य से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। लो, यह श्रीफल, इसे रानी वेगवती को खिलाना। इसके प्रभाव से तुम्हें महा प्रतापी और मेधावी प्रतिभा के मूर्तिमंत प्रतीक स्वरूप दो पुत्ररत्नों की प्राप्ति होगी।" और क्षणार्ध में ही देवी अन्तर्धान हो गयी। राजा श्रीफल ले, राजमहल पहुँचा। विधि पूर्वक प्रभु पूजन-अर्चन कर उसने अठ्ठम तप का पारणा किया। ठीक वैसे ही रानी वेगवती को अपनी कठोर तपश्चर्या से अवगत कर उसे देवी द्वारा प्रदत्त श्रीफल प्रदान किया। श्रीफल के प्रभाव से रानी वेगवती ने दो पुत्ररत्नों को जन्म दिया। पुत्रोत्पत्ति से राजा-रानी के आनन्द का पारावार न रहा। योग्य समय पर दोनों कुमारों के नामाभिधान-संस्कार सोत्साह पूर्ण किये गये और उनका नाम कामजित् एवम् प्रजापाल रखा गया। - पाँच उपमाताओं के संरक्षण में और सोने-चांदी के खिलौनों के संग खेलते... क्रीडा करते बालक-द्वय दिन दुगुने रात चौगुने बढने लगे। माता-पिता के लाड-प्यार और प्रजाजनों के स्नेहाभिषेक से कुमारों के जीवनोद्यान से शैशव-पंछी कब उड गया, किसी को ज्ञात नहीं हो सका। आयु के आठ वर्ष पूर्ण होते ही दोनों को अध्ययन के लिए गुरुकुल में प्रेषित कर हर सोमाता राजन के धैर्य और शौर्य से प्रसन हो देवी श्रीफल लिये खडी है, रानी को देने के लिए। P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust