Book Title: Bhimsen Charitra Hindi
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 268
________________ 258 भीमसेन चरित्र देवदत्ता ने विद्युन्मति के सुवर्णालंकारों की जी भरकर प्रशंसा की। साथ ही प्रीतिमति के मन पर यह तथ्य स्थापित करने का भरसक प्रयत्न किया कि, 'उक्त अलंकार धारण करने के लिए वही एक योग्य व्यक्ति है। ऐसे बहुमूल्य, दिव्य एवम् भव्य आभूषण धारण कर यदि छोटी रानी बाहर निकले तो राजरानी का प्रभाव ही क्या? सामान्य जनता में उसकी मान-मर्यादा कैसे रह सकती है? अतः उक्त अलंकार सभी दृष्टि से महारानी को ही शोभा देते है। वही एक मात्र ऐसा व्यक्तित्व है, जो अपने शरीर पर ऐसे अनुपम आभूषण धारण कर सकती है। 3 सेविका ने ऐसी खूबी से प्रीतिमति के कान फँके कि, वह किसी भी कीमत पर उक्त अलंकार प्राप्त करने के लिए उद्ध त हो गयी। यह करते हुए उसने अपनी आन, मान और मर्यादा को ताक पर रख दिया। . ....... - फलस्वरूप कामजित के अन्तःपुर में प्रवेश करते ही उसने सर्वप्रथम विद्युन्मति के अलंकारों की बात छेड दी। देवरानी के वे अलंकार प्राप्त करने की हठ की। ..... "अरी, हमारे पास अलंकारों की कहाँ कमी है, सो तुम व्यर्थ में ही विद्युन्मति के आभूषणों की बात ले बैठी और फिर देवरानी के आभूषण भी कहीं माँगे जाते हैं। यदि तुम चाहो तो उससे भी अधिक सुन्दर और नक्काशीदार आभूषण तुम्हारे लिए और बनवा लूँ।" -, कामजित् ऐसी तुच्छ बात में सिर खपाने के लिए तैयार नहीं था और ना ही चाहता था। क्योंकि वह भली भाँति जानता था कि, ऐसी ही.छोटी-मोटी बातें कटू रूप धारण कर भयानक कलह में परिवर्तित हो जाती है, साथ ही परस्पर प्रेम की जडों को खोखला करने में कारणभूत बनती है। अतः वह नाना प्रकार से रानी को समझाने का प्रयत्न करने लगा। ____ यदि समझाने से समझ जाए तो वह स्त्री कैसी? रानी हठ पर अड गयी। 'नहीं... नहीं, मैं देवरानी के अलंकार लेकर ही रहूँगी। आप मुझे ला दीजिए।' -: र - भारी नोंक-झोक के अनन्तर स्त्री-हठ के मुकाबले कामजित् को हार खानी पडी। और उसे 'देखने के लिए उक्त अलंकार लाने की बात पर सहमत होना पडा' तभी प्रीतिमति मानी। ... .... ...... .: "प्रजापाल! तुमने अपनी पत्नी के लिए जो नये आभूषण बनवाये हैं, उन्हें तुम्हारी भाभी एक बार देखना चाहती है। अतः उन्हें आभूषण पहुँचा देना।" दूसरे दिन कामजित् ने प्रजापाल से कहा। . . : "तात! श्रद्धेय भाभी से अधिक भला क्या हो सकता है? रही आभूषण की बात, यदि वे चाहे तो मेरे प्राण भी हाजिर है।" प्रत्युत्तर में प्रजापाल ने गद्गद् स्वर में कहा। और दूसरे दिन विद्युन्मति के अलंकारों भरी रत्नमंजुषा प्रीतिमति को पहुँचा दी। Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.

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