________________ 178 भीमसेन चरित्र हुए थे। समय के साथ कलश भी तैयार हो गया और शुभ घडी में उसे शिखर पर आरोपित किया गया। परन्तु आश्चर्य! दूसरे दिन ही कलश नीचे गिरा हुआ था और शिखर कलश हीन ऐसे लग रहा था मानों धड के बिना सर। भीमसेन के आश्चर्य का पारावार नहीं रहा, यह भला कैसे संभव हुआ? उसने शिल्पियों से इसका कारण पूछा, मंदिर के निर्माण कार्य में तो कहीं कोई त्रुटि नहीं रह गई? पुनः नकरों के साथ मिलान कर देखा। कहीं कोई त्रुटि दृष्टिगोचर नहीं हुई। तो क्या मुहूर्त में कोई गडबडी हो गयी? ज्योतिषियों को आमंत्रित कर जानकारी प्राप्त की। ग्रह-नक्षत्र सूर्य चन्द्र अंश अक्षांश सभी का सम्पूर्ण अध्ययन किया,किन्तु कहीं भी तो क्रम भंग या अनुचित नहीं था। सभी कुछ तो व्यवस्थित था तथापि कलश क्यों गिर पडा? ... इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। __ क्या किसी दुष्ट देव का षड्यन्त्र है। मन शंका-कुशंका से भर गया। प्रयत्नों की राकाष्टा करने पर भी समाधान नहीं हो सका। दूसरे दिन पूरी सावधानी के साथ कलश भारोपण की विधि पुनः सम्पन्न की गयी। भीमसेन ने पूरी रात कलश की ओर स्थिर दृष्टि रखे आंखों में ही काटी। थोडा भी प्रमाद किये बिना रात व्यतीत की। किन्तु आश्चर्य! प्रातः शिखर पर कलश नहीं था। भीमसेन गहन विचार में लीन हो गया। ज्योतिषाचार्य एवम् शिल्प विशारदों का अनुभव भी वास्तविक कारण जान नहीं सका। ऐसा क्यों हो रहा है? उसका कारण कोई ज्ञात नहीं कर पा रहा था। इस रहस्य को ज्ञात करना सबके लिये अनिवार्य हो गया था। कलश विहीन कोईभी मंदिर अपूर्ण ही कहलाता है। और काम को यो अधूरा छोडना संभव नहीं था। भीमसेन की चिंता बढ गई। विजयसेन भी चिन्तित हो गया। दोनों में संयुक्त राज्यादेश निकालें, जो भी कलशारोपण में रही त्रुटि अथवा कारण का पता लगाकर उसका सही हल खोज निकालेगा और सब का समाधान कर सफलतापूर्व कलश रोपण कर दिखलायेगा। ऐसे व्यक्ति को राजा की ओर से मुँह माँगा पुरस्कार दिया जायेगा।" तत्पश्चात कई दिनों तक इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकला। एक बार भीमसेन को किसी ने संदेश दिया कि कोई विदेशी महानैमित्तिक उससे भेंट करना चाहता है। नैमित्तिक ने भीमसेन की भेंट की। उसने बताया कि जिस दिन उक्त मंदिर के प्रवेशद्वार में कोई शुद्ध शीलवती नारी अपने पुत्र के साथ प्रवेश करेगी उसी दिन कलश शिखर पर स्थिर होगा। यह सुनकर जो स्त्रियां समय निकाल कर नूतन जिनालय के दर्शनार्थ आती थी अब उनका भी प्रायः आना बन्द हो गया। शुद्ध शीलवंती की शर्त ने सभी स्त्रियों को भयभीत कर दिया। विशुद्ध शील का अर्थ मन वचन और काया से किसी पर पुरूष का कभी स्वप्न में भी विचार नहीं किया हो। ऐसा उत्तम शील मानव P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust